
यह नए दौर का भारत है। नई तरह की सोच रखता है। दुनिया से कदमताल करने के साथ अपनी परंपरा और मूल्यों को अक्षुण्ण रखना भी इसकी एक अदा है। कभी हम विश्व गुरु थे। हमारे मनीषियों ने दुनिया को ज्ञान का जो उजियारा दिया, उससे दुनिया तो आगे बढ़ी लेकिन वक्त की दौड़ में हम पिछड़ते गए। देश-काल और परिस्थितियां भी इसकी जिम्मेदार रहीं। 21वीं सदी की जरूरतों के मुताबिक हम फिर से उठ खड़े होने लगे हैं। किसी देश के समग्र निर्माण में शिक्षा का अहम योगदान होता है।
पुराने जमाने की सोच वाली 1986 में बनी शिक्षा नीति को त्याग कर हमने भविष्य की जरूरतों को ध्यान रख नई शिक्षा नीति लागू की। 29 जुलाई को इसके एक साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री मोदी ने नई शिक्षा नीति को राष्ट्र निर्माण के महायज्ञ में बड़ी आहुति करार दिया। सही बात है, कोई भी देश जो सीखेगा, वही सिखाएगा और उसी दिशा में उसके आचार-विचार और व्यवहार आगे बढ़ेंगे। कोविड-काल की चुनौतियों के मद्देनजर तमाम सहूलियतों की खूबियों वाली इस शिक्षा नीति का खुलापन और दबावरहित होना सबसे बड़ा गुण है।
भारतीय शिक्षा क्षेत्र की चुनौतियां कम नहीं है। सबको शिक्षा, सस्ती शिक्षा, गुणवत्ता युक्त शिक्षा और अर्थव्यवस्था को मजबूती देने वाली शिक्षा आज समय की दरकार है। आने वाला समय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का है। युवाओं को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रोग्राम के साथ-साथ देश में डिजिटल और टेक्नोलाजी का बुनियादी ढ़ाचा खड़ा करने का काम जोरों पर है। देश की अर्थव्यवस्था को एआइ आधारित बनाने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में ये कदम क्रांतिकारी साबित हो सकते हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जिस देश में आज भी इंटरनेट स्पीड और स्मार्ट फोन की उपलब्धता के साथ शिक्षा से जुड़े तमाम संसाधन अविकसित स्तर पर हों, वहां शिक्षा क्षेत्र में उठाए गए ये कदम वैश्विक जगत से कदमताल में कितने उपयोगी साबित होंगे। ऐसे में नई शिक्षा नीति के एक साल पूरे होने पर इसकी अब तक की उपयोगिता और भविष्य की राह की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

साभार: इंटरनेट/जागरण